सभी प्रश्नों के उत्तर केवल ” हाँ ” अथवा ” ना ” में देने हैं ।
- क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो गुलाम प्रथा की पक्षधर हो ?
- क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जिसके अनुसार महिलाओं के अधिकार पुरुषों से कम हो उदाहरण के लिए यदि कोई पुस्तक एक महिला के साक्ष्य को पुरुष के साक्ष्य से आधा मानती हो तो क्या आप उस पुस्तक को स्वीकार करेंगे ?
- क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो भारत के संविधान की दंड प्रणाली की अवहेलना करते हुए क्रूरता पूर्ण दंड देने की पक्षधर हो ( जैसे कि हाथ पैर काटना )?
- क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो मजहब के आधार पर भेदभाव करने के लिए प्रेरित करती हो ?
- भारतीय संविधान प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छा से पूजा पद्धति करने अथवा का अधिकार देता है क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो किसी को हिंसा करके अथवा हिंसा का भय दिखाकर मजहब परिवर्तन करने अथवा मजहब अपनाने के लिए उकसाती हो ?
- भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को आस्तिक अथवा नास्तिक होने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो नास्तिक होने को दंडनीय मानती है अथवा नास्तिकों को प्रताड़ित करने अथवा उन्हें मारने का समर्थन करती है ?
- क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो पुरुष को अपनी पत्नी को पीटने का अनुमोदन करती हो ?
- भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है इसलिए यहां ब्लॉस्फेमी अथवा गुस्ताखी को दंडनीय नहीं माना जाता है। क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो ब्लॉस्फेमी अथवा गुस्ताखी को अपराध मानती हो ?
- भारतीय समाज में महिलाओं के सम्मान के साथ साथ देवियों की भी पूजा की जाती है। क्या आप ऐसी प्रत्येक पुस्तक को अस्वीकार/निराकृत करते हैं जो देवी को पूजने योग्य ना मानती हो अथवा देवी-पूजन की निंदा करती हो ?
- क्या उपरोक्त प्रश्नों में से किसी एक का भी उत्तर ” ना ” में देने वाला व्यक्ति सभ्य समाज में रहने योग्य है ?
वह सभी पुस्तकें जो ऊपर लिखित बातों का समर्थन अथवा अनुमोदन करती है उन्हें प्रतिबंधित किया जाए। और यदि वह पुस्तकें किसी मत, पंथ, संप्रदाय, रिलीजन, मजहब की है तो उस मत, पंथ, संप्रदाय, रिलीजन, मजहब के अनुयायियों को मुख्यधारा में सम्मिलित करने के लिए एक विशेष मंत्रालय एवं आयोग का गठन किया जाए। इसे मानवता मंत्रालय अथवा मानवता आयोग का नाम दिया जा सकता है।